दैनिक भारती (ब्यूरो) लुधियाना : लुधियाना रेलवे स्टेशन को एक मॉडर्न रेलवे स्टेशन बनाने का कार्य जब से अपनी प्रगति पर आया है तब से ही लुधियाना रेलवे स्टेशन पर आने वाले यात्रियों को बेतरतीब सिस्टम के चलते कई प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा ही कुछ हाल लुधियाना के आरक्षण काउन्टरों पर भी देखने को मिला जहां पर वरिष्ठ नागरिकों के साथ-साथ महिलाओं को भी अपनी आरक्षित टिकट को लेने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है और आरक्षण काउंटर के अंदर बैठे बाबू अपनी मन मर्ज़ी व मस्ती से काम करते हुए नज़र आते है और जब कोई महिला आवेदन करता इस बात को लेकर अपनी आवाज उठा इस बात का विरोध करती है तो आरक्षण केंद्र पर काम करने वाले कर्मचारी उनसे बेहद बदतमीज़ी से पेश आते हैं। रेलवे से 5 से 6 फिगर में सैलरी व सुविधाएं लेने वाले बूकिंग क्लर्क बाबू मानो आवेदक का अगर कोई आरक्षित टिकट बना कर दे रहें है तो वो आम जनता से ऐसे वर्ताव करते हैं मानों उन्होंने अपना काम नहीं बल्कि आम जनता का काम करके उनपर एक बहुत बड़ा एहसान कर दिया हो। लुधियाना के ज़्यादातर रिज़र्वेशन काउंटर स्टाफ की कमी के चलते बंद पड़े है और इसका खामियाजा आम जनता को परेशानियां झेल कर भुगतना पड़ रहा है। लुधियाना रिज़र्वेशन दफ्तर का काउंटर नम्बर 923 व 926 पहले से ही बंद पड़े है और केवल 2 से 3 आरक्षण काउंटर ही आरक्षित टिकट बनाने का काम कर रहें जिसकी वजह से काउंटर नम्बर 930 जो कि खास कर महिलाओं, दिव्यांगजन, वरिष्ठ नागरिकों, रेलवे कर्मचारी व पत्रकारों की आरिक्षत टिकट बनाने के लिए निर्धारित किया गया है इस काउंटर पर अन्य यात्रियों की भीड़ ने इन सभी निर्धारित आवेदकों को अपनी आरिक्षत टिकट लेने के लिए भारी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। 930 नम्बर के इस काउंटर पर बैठे बाबू को भी इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं है। इस कार्य से संबंधित जानकारों की माने तो एक आरक्षित टिकट को बनाने में करीब 3 से 5 मिंट का ही समय लगता है मगर लाइन में खड़े करीब 8 से 10 लोगों को अपनी आरिक्षत टिकट बनवाने के लिए कई-कई घंटे अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता है। अब ऐसा क्यों हो रहा है यह अपने आप में एक जांच का विषय है और इस पूरे मामले में विजिलेंस के हस्तक्षेप की बहुत सख्त ज़रूरत है। इस पूरे मामले पर अपनी सफाई देते हुए 930 नंबर काउंटर के बुकिंग क्लर्क जसपिंदर सिंह का कहना था कि वो किसी भी आम व्यक्ति को इस खास तरह के काउंटर पर आने से नहीं रोक सकते क्योंकि यह काम उनका नहीं बल्कि जीआरपी का है और आम पब्लिक की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वो किसी भी अन्य आवेदक को इस लाइन में न आने दे क्योंकि दोपहर के केवल 2 बजे से पहले ही वो किसी को इस लाइन में आने से रोक सकते हैं और 2 बजे के बाद यह काउंटर एक जनरल काउंटर बन जाता है मगर फिर भी महिलाओं, दिव्यांगजन, वरिष्ठ नागरिकों, रेलवे कर्मचारी व पत्रकारों को प्राथमिकता दी जाती है। अब उनके द्वारा दी गई यह जानकारी आधिकारिक तौर पर कितनी सही है यह भी अपने आप में एक जांच का विषय है।
आगामी चुनाव सिर पर है और इसी आम जनता ने ही केंद्र में अपनी सरकार चला रहे मंत्रियों और यहां तक के रेल मंत्री को अपनी कीमती वोट देनी है और अगर केंद्र में बैठी सरकार जनता की इन मूलभूत सुविधाओं को दरकिनार कर उसे अनदेखा करती है और ऐसी परिस्थितियों की एक आम बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती है तो ऐसे में आम जनता अपना जवाब वोट से चोट करके देती है। महिलाएं व वरिष्ठ नागरिक भी केंद्र सरकार के मंत्रियों के लिए एक बहुत बड़ा वोट बैंक है और ऐसे में इस वर्ग को उनकी अहम सुविधाओं से वंचित रखना केंद्र सरकार के मंत्रियों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है। इसलिए इस एरिया के स्थानीय डीआरएम के साथ-साथ रेल मंत्रालय को भी इस ओर ध्यान देने की बहुत सख्त ज़रूरत है।